जब तुम नहीं होते हो

 काली काली परछाइयों के बीच 

मई बिलकुल अकेली हो जाती हूँ 

भय के भयानक पंजे मुझे दबोचने लगते हैं 

सच और झूठ का फरेब आग उगलता है 

इन सबके बीच डरती कांपती मैं 

......सब कुछ एक दुह्स्वप्न की तरह.

 तुम......, 

तुम कहाँ होते हो प्रिय 

तुम्हारी याद एक सिहरन बनकर उभरती है 

और तुम्हारा न होना...विषदंश !!!

मेरे अकेलेपन में हर तीस कि वजह तुम होते हो 

क्युकि तुम वहां नहीं होते हो !


दीवार पर फैलते बिगड़ते पंजे 

यादो की सिहरन और वो भयानक आग 

मुझे दबोचने लगते हैं कि अचानक

खुल जाती है आँखे

टूट जाता है कुछ देर के लिए ही सही 

तुम्हारे पास होकर भी तुम्हे खो देने का भय 

पलट कर देखती हू तुम्हे छूकर 

हर त्रास को झूठ समझ कर फिर सो जाने की कोशिश करते हुए 

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