स्याह जिन्दगी

 कुछ दिन थे बाकी जिन्दगी के 

आधे अधूरे सपनों की छांह समेटे 

कुछ धुल थी उम्मीदों की 

वक्त की मेज पर हौले हौले जमी सी 

टूटे बिखरे कांच से 

बिखरते सपनो के टुकड़ों से 


अब स्याह हो गई है जिन्दगी

स्याह हो गई है  हर कहानी 

राख हो गए हैं अधूरे सपनेऔर कांच के टुकड़े

साँसों की किरकिरी बन गए हैं 

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