बस यूं ही खयाल रखता था
कि भीड़ में चलते वक्त अनायास ही
उसके हाथ मेरे कंधों को बचाने आ जाते पीछे
उसे वफा और इश्क की बातें फिज़ूल लगती थीं
पर घंटो चाय की दुकान के पास
सिर्फ इसलिए बैठता था
कि मैंने कहा स्वाद चाय में नही आसंग में होता है
वादों और सपनो की उलझन से
वो हमेशा भाग निकलता था
फिर भी इस बात पे लड़ता था कि
हमने उसे क्यों नहीं बुलाया
कुछ ऐसी अलग अलग ज़िद भी होती हैं
वादों से चिढ़ते हैं लोग और जाने क्यों साथ निभाए जाते हैं...
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