उड़ते गए मजाक तुम लैला मजनू शहरी फरहाद का
और हम यूं ही लटके रहे अधर में
कभी तो तुम्हे भी सच्चा प्यार होगा
वक्त बेवक्त तुम्हारे अचानक और बेहिसाब बरसते जज़्बात
कन्फ्यूज करते रहे
खुद ही खुद हम कयास लगाए गए
इतने अच्छे तो लोग प्यार में ही हो सकते हैं
हालांकि तुमने कहा था इतना अच्छा तो मैं सबके लिए हूं
ये रिलेशनशिप कभी सिचुएशनशिप से आगे बढ़ी ही नही
मगर जब भी तुम्हे अहसास हुआ दूरी का
अचानक से फिर आ दबोचा अपने खूबसूरत शब्दों में
सवालों का जवाब नही था तुम्हारे पास
सौ सौ सवाल फिर भी हमसे ही करते गए
और हम तुम्हारे हर इनकार में कोई दबा छुपा सा जवाब ढूंढते रह गए
तुम सही थे यहां तुम्हारी कोई गलती नही थी। इतने अच्छे तो तुम सबके लिए थे
शायद इतने करीब भी सबके लिए थे
बस हमारी सोच गलत थी कि
उन सब में कुछ खास रहे होंगे हम
या सिर्फ हम ही रहे होंगे हम
ये भी आखिरी था सबके लिए अच्छा बनने की तुम्हारी आदत से कन्फ्यूज होना
और ये आखिरी था खुद को तुम्हारी जिंदगी में शामिल होने का भ्रम रखना
No comments:
Post a Comment