एक वही अक्स आता रहा

वो इश्क ही था हर दफा रुलाता रहा
सफर तो यूं आसान ही था मेरा
कांच सा टूट कर जो चुभता रहा
ज़ख्म बना दिल ही था मेरा
उनको जाना ही था दिल तोड़ कर ही 
बार बार फिर भी वही फलसफा दोहराता रहा
इश्क और जिंदगी को अलग अलग क्यों नही जी लेते
प्यार करते हो तो गलत हो ये बताता रहा 
हम ऐसे ही क्यों न रह सकते 
साथ निभाने की ख्वाहिश फिज़ूल कहता रहा 
हर एक आंसू को दफन करते गए हम 
जेहन में फिर भी एक वही अक्स आता रहा

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