हाँ ये सही है मैं उस तरह सोच नहीं पाती
जैसा अक्सर सोचते हैं लोग.
मैं तुम्हारी हर एक बात आशाओं की डोर से गूंथ लेती हूँ
और हर डोर सपनो की माला बन जाती है.
मैं हर रंग को ख़ुशी की नेमत समझ लेती हूँ
और हर ख़ुशी मेरे लिए इन्द्रधनुष बन जाती है.
मैं हर उस कागज़ को कुरान समझ लेती हूँ जिस पर प्यार लिखा होता है
और इश्क मेरे लिए खुदा की इबादत बन जाती है.
पर तुम जानते हो, चीजें अक्सर वैसी होती नहीं,
जैसा मैं सोचती हूँ, जैसा मैं देखती हूँ.
तुम्हारे बार बार समझाने पर भी
मैं सख्त जमीन को महसूसना नहीं चाहती,
मैं क्या करूँ, अपने आप को बदल नहीं पाती.
उस तरह, वैसा बना नहीं पाती,
जैसी चीजें होती हैं ...
जैसे अक्सर हो जाते हैं लोग ...
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