तुम चाहो तो चाँद को छु लो
मैं झील किनारे ही बैठना चाहती हूँ
लहरों के बीच बनती बिगडती
चाँद की परछाई देखते रहना चाहती हूँ
मैं डरती हूँ चाँद को छूने से कहीं दाग न लग जाये
बस आईने की ख़ूबसूरती निहारना चाहती हूँ
तुम महफ़िल की रौनक बनना चाहते हो
मैं अमावास का टिमटिमाता तारा
आसमान की ऊंचाई और झील की गहराई
कुछ ऐसा ही फर्क है तेरी मेरी चाहत में
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