चांदनी का अमावस

 पता नहीं क्यों डर लगता है 

चाँद को देखकर

और हसीं चांदनी 

शूल बनकर दिल के आर पार होती जाती है 


तुम्हारी खामोश ख़ूबसूरती 

रातों को खौफनाक नज़र आती है 

मेरी आखों की  कशिश 

अनजानी तड़प में बदल जाती है 


पता नहीं क्यों 

डरती हूँ अमावस की कलि ररत न आ जाये 

और ये समंदर किसी नदी में न खो जाये 

शायद मैं खुद चांदनी का अमावस हूँ 

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