दुनियावी ओर हिसाब इश्क
अब हमारा इश्क गुलाबी नहीं
किताबी नहीं ओर इन्कलाबी भी नहीं
अब वो हमें गालिब ओर फैज के शेर नहीं सुनाता
अब ये दुनियावी ओर हिसाब बातें हमारे बीच होती हैं
ओर नाराज़गी इस बात की कि उसकी अम्मा की जेठानी की बेटी के ब्याह का किस्सा मैं नहीं सुन रही
ओर हमारा ढीठपन देखो कि अब भी शायरी की बातें करते हैं
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