अब कविताओं पर भी नजर हैं उन लोगों की

अब कविताओं पर भी नजर हैं उन लोगों की
जिन्होंने बेड़ियां डाली पैरों में पायल ओर बिछुए बना कर
जंजीर जकड़े हाथों में चूड़ियां पहना कर
सपनों को सेंसर किया भर भर कर सिंदूर, घूंघट ओर नकाब डाल कर
लक्ष्मणरेखाएं खींच दीं दिन ओर रात के हिसाब के साथ

अब कविताओं पर भी नजर है उनकी
वो तौलते हैं तुम्हारी हर बात को 
बिना किसी उलझन के जड़ देते हैं अपने बनाए हुए टैग
तुम मुस्करा भर दो तो शक की निगाह से देखेंगे 
तुम रो दो तो लाचारगी बता कर हंस लेंगे 
तुम्हारी खामोशी को भी एक इल्जाम बताएंगे 

मगर तुम्हारे शब्दों से डरते हैं वे
क्यूंकि शब्द बेबाक हैं उनमें घूंघट नहीं
शब्द नग्न सत्य है वे उन पर पर्दा डाल नहीं सकते
शब्दों से टूटता है वो सारा छद्म ओर तिलस्म 
जिसके सहारे राज करते आए हैं वे सदियों से 
इसलिए अब कविताओं पर नजर है उनकी
कि उन्हें रोक कर वो कायम रख सकें 
परंपरागत पितृसत्ता ओर उसके थरथराते आडंबर

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