सुनो, तुम जो ये सुबह सुबह ३ बजे गुड मॉर्निंग की औपचारिकता करते हो, अच्छा लगता है! अपने व्यस्त जीवन मे इंस्टाग्राम की खिड़की और व्हाट्स के रोशनदान से प्यार वाले इमोजी भेजते हो, बचकाना सही मगर अच्छा लगता है! कभी वीडियो काल की जिद करना और कभी फोन पर इजहारे मुहब्बत सुनने की प्रतीक्षा करना सदियों पुराना सा है मगर अच्छा लगता है ! और कभी ये कहना कि मै सब ठीक कर सकता हूँ और कभी दूर होकर भी पास होने की ' फील ' देना नब्बे के दशक वाला किसी " इलू इलू" के गीत सा है मगर अच्छा लगता है !
दिल चाहता है गाना तो सुना ही होगा आपने? खासकर जब आप अपने प्रोफाइल पर 80s and 90s किड लिखते हैं और सोचते हैं सामने वाला इस बात से आपको खास तवज्जो देगा। प्रोफाइल से मतलब मेरा सोशल मीडिया से है क्योंकि आजकल लोग इंप्रेशन जमाने के लिए न तो शोले के वीरू की तरह पानी की टंकी पर चढ़ के चिल्लाते हैं और न इश्क में मर मिटने की तमन्ना लिए अनारकली की तरह दीवार में चिनने जाते हैं। सोशल मीडिया तो क्रांति ले आई इस इंप्रेशन वाले मामले में। इतना आसान है __ दो चार फोटोशॉप किए हुए फोटो लगा दो, अच्छी अच्छी बातें लिख दो, और नही आता तो किसी अच्छे लेखक या शायर की दो चार पंक्तियां उधार में डाल दो। बस हो गई एक नंबर की प्रोफाइल तैयार। उधार भी क्यों भाई साहब कहिए कि हमने ही लिखी है। सामने वाला या वाली भी लाइब्रेरी में बैठ कर बाल तो सफेद कर नहीं रहे की उन्हें पता भी हो कि जो अल्फाज पढ़ कर वो फिदा हुए जा रहे वो शेक्सपियर और रूमी के डायलॉग हैं। और पता भी चल जाए तो आप ये कह सकते हैं हमारा टेस्ट बहुत अच्छा है। इसको बोलते हैं हर्रे लगे न फिटकरी और रंग भी चोखा हो जाए ! लेकिन इस हर्रे और फिटकरी के चक्कर ...
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