बात तो अब भी कर लेते हैं हम

बात अब भी करता है वो फूलों ओर शायरी की नहीं
हर बात में झलकती है उच्च्छवास ओर अफसोस
जैसे मेरे होने का ग़म हो उसे
फिर भी बात करता है
फिर बातों में सिर्फ मेरा मजाक उड़ाता है
मेरे जीने के ढंग पर
चलने, रहने ओर सोने ओर सपनो पर
जैसे उसने तय कर लिया हो बिना मेरी बुराई किए उसकी जिंदगी का एक भी क्षण पूर्ण नहीं हो रहा हो
बात अब भी करता है वो हमसे 
खयाल अब भी उसे ओर इस बात का ग़म भी कि ख्याल क्यों है उसको
जितने जतन से खुद से दूर किया उसने 
अफसोस इस बात का फिर भी है
 क्यों कोई ओर पास है इसके
अब हमारे बीच शब्दों की तलवारबाजी होती हैं
पैंतरे बदले जाते हैं हर वक्त कभी इस बात को लेकर कभी उस बात का बहाना बनाकर 
अब भी मिलते हैं हम फीकी चाय की कड़वाहट से
बेस्वाद बदमजा करेले की सब्जी चबाते हुए 
जैसे बहुत अफसोस हो उसे की हम उससे मिले बिना क्यों नहीं रह सकते 
ओर फिर दुबारा अफसोस हो कि उसके बिना सांस  ही क्यों ले रहे हम

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