इनसे बचने की जरूरत है

अब थोड़ा थोड़ा हम भी पहचानने लगे हैं
चीजों को, लोगों को ओर कीड़ों मकोड़ों को
परजीवियों को, उपभोक्तावादियों कौन
ओर अवसरवादियों को
अब हम भी समझने लगे हैं
आक्षेप जिनका लक्ष्य सिर्फ किसी को भी लग जाना होता है
निंदा जो  यूनिवर्सल होते होते कब निजी हो जाती हैं
ओर सुझाव जो शुरू से ही जजमेंटल होते हैं 
पर कहा जाता है हमने तो अपना समझ कर कहा था 
रक्तबीज की तरह फैलते ये साए 
हमेशा लिपटे रहते हैं हमारे आसपास 
पड़ोस, कार्यालय ओर सड़क पर आते जाते लोगों के बीच
ओर मौका पाते ही दबोच लेते हैं आपके 
स्वतंत्र स्वर, वस्त्र, खान पान ओर विचारों को
क्षीण कर देतें है आपके उत्साह, आंदोलन ओर हर आवाज को जो थोड़ा उनके लीक से अलग हटकर 
ओर आप उस बीमारी से ग्रस्त हो जाते हैं 
जिसका नाम है "लोग क्या कहेंगे"
बस टीकाकरण के साथ साथ अब इन सबसे बचने की जरूरत है

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