मुझे सिर्फ शब्द चाहिए थे

मैने तुम्हे पत्थरों, पहाड़ों, नदी
 ओर जंगलों में नहीं ढूंढा
पता था तुम वह नहीं मिलोगे
मैने ढूंढा तुम्हे अपार भीड़ में, 
जहां इन्सान गीत गाते हैं इंसानियत का
मैने ढूंढा तुम्हे हर जश्न ने 
जहां जीत ओर संघर्ष दोनों के ही गीत गाए जाते हैं
मैने तुम्हे मिट्टी खुद कर निकले
 लकड़ी के उस टुकड़े में नहीं ढूंढा
जिसकी आकृति में लोग खुदा ढूंढने लगते हैं
मैने सिर्फ चाय की दुकान पर, नुक्कड़ वाले मोड पर, ओर लाइब्रेरी की सीढ़ियों पर पाया 
जहां अक्सर किताबों ओर सोच का मेला लगता है
मुझे जो चाहिए था वो थे सिर्फ शब्द...
ओर मैं समझ पा रही शब्दों का कोई शहर नहीं होता 
कोई पता नहीं कोई ठहराव नहीं 
ये तलाश अब यही खत्म होती है...

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