तुम्हारी कल्पनाओं की परफेक्ट औरत

तुम्हे  दुःख है तुम्हारी कल्पनाओं की 
वो  औरत  एक परफेक्ट परी नहीं बन पाई
मगर उसने प्रेम बहुत ज्यादा किया
शायद तुम्हे भी इसी बात का अफसोस है 
ओर इसलिए बहुत बहुत नाराज हो मुझसे
खुद से ओर तमाम उनलोगों से जो 
अपनी अपनी अपेक्षाओं को तुम पर टिकाए हुए हैं
मगर उस औरत के पास सिर्फ प्रेम था
असीम प्रेम और शायद वो इसी बात के सहारे जी सकती थी
मगर बात यही तक सीमित नहीं थी
हृदय से निकले प्रेम को वास्तविकता की नींव चाहिए होती है
ओर तुम्हारी जिंदगी में बहुत कुछ झोल अभी बाकी है
तो पहले उन जंजीरों को महसूस करो जिनसे जूझते हुए लहूलुहान हैं सदियों से उसके पैर
उन लक्ष्मणरेखाएं को के अंदर जाकर देखो
जिसे समाज, घर, जिम्मेदारियां ओर मर्यादा कहा जाता है 
वर्जनाओं के उस जाल को अपने चेहरे की शिकन में
 उभरने देते हुए कुछ ओर वक्त दो
तुम्हे पता चल जाएगा सचमुच प्रेम काफी थी 
इन सब बातों से परे होकर जीने के लिए

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