apriya striyan
जबतक वो रूप का सागर बनी रहे
हाथों में रसोई ओर गोद में बच्चे लिए रहे
सदियों से तलवार लेकर खड़ा पुरुष गलत लक्ष्मणरेखाएं खींचता आया है स्त्रियों के लिए
ओर इसलिए
उस दिन वही स्त्री अप्रिय हो जाती है
जब हाथ में कलम ले उसके समकक्ष खड़ी हो जाती है और बताती है कि उसके जीवन की परिभाषाएं वो खुद लिख सकती है
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