थोड़ा वक्त लगेगा
खामोशी के बीच बार बार
आंसुओं का एक रेला सा
आंखों में न आकर गले में अटकता सा
नीचे से ऊपर तक
सिर्फ बंगाल की खाड़ी की तरह खारा
फिर सब ड्राई...
वक्त ब्लॉटिंग पेपर है
सुना है सब सोख लेता है
वादे, कसमें, वफ़ा, बेवफा...
शिकवे ओर शिकायतें भी
हावड़ा ब्रिज से गुजरते वक्त
अटकोगे अचानक तुम भी
इस मजाक पर खुद ही हंसोगे
हम सब हर बार खुद को थोड़ा थोड़ा खो देते हैं
ये कहने के बावजूद कि
इश्क़ का ये मंजर पसंद नहीं आया
बाजार है, लेट्स मूव ऑन, आगे चलो
समेट कर खुद को तुम्हे ओर वक्त को
चलना तो मुझे भी है,
थोड़ा अजीब हूं थोड़ा ओर वक्त लगेगा...
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