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Showing posts from February, 2012

तुम्हारे लिए है ये शब्द

तुम्हारे  लिए  मेरे  पास  है सिर्फ कुछ शब्द शब्द जो घुमड़ते  रहते  मेरे  आजू  बाजु ओउर  अपने  गाये  गीतों  मेही धुन्धती  रहती  मई  तुम्हारी  प्रतिध्वनि तुम्हारे नाम से  शुरू  होती  सुबह धुप  बन  के  बिखर  जाती  है ओउर  तुम्हारे  तैरते  शब्द मुझे  शाम  में  समेट  लेते  है ... ये  मेरे  एहसास  का ग्लोबलाइजेशन   है . कभी  लगता  है  झ्हरियो से आती  मोर  की  आवाज़  में  हो  तुम कभी  कॉलेज , कैंटीन  ओउर  क्लास  के  कोलाहल  में, जहा  हर  कोई अपने "इज्म " में खोया है. तुम्हारे इम्पेर्फेक्सन  का  आकर्षण सोखा  रहा  मेरे  अनकहे  शब्दों  को और मैं  सोच  रही  हूँ ..... की  ब्लोटिंग  पेपर  पर...

Do not try to change me as a woman I am what I am

Do not try to change me I am just a woman I am individualistic, I am egoist, I am arrogant, I am uncompromising, I am unforgiving, I am rudely honest,  I am unforgiving, I am "unadjusting".....but I am what I am.. You can not simply sit beside me and peel off with your criticism,  you can not say you like me and then start trying to impose your desired changes. I do not want you to praise my dreams and cover me in  your shadows I do not want you to shelter me and imprison within your imaginary rules and limits I have my own horizons to cross and reach beyond Do not try to tell me what 'should' I be because I am what I am. I am not an illiterate exploitable homo sapiens of yesteryear who was subjected to medical experiment in Ethiopia, Niger and Cameroon. I am no more the woman who suffered in Nile and ancient Rome for you chastised not giving you your desired pleasures.. Stay away, I am a truth that exists beyond all definitions Do not modify me be...

परछाइयाँ रोकती हैं रास्ता

परछाइयाँ रोकती हैं रास्ता मंजिल का गुमान देकर हम इस तरफ देखे की उस तरफ.. चलना है..चलते ही  जाना है ..रुकना नहीं जिंदगी हर तरफ ये दावा करने वालो की भीड़ हैं कि बस वो ही हैं मुकम्मल जहाँ बनाने वाले कोई हमसे कहा पूछता कि मेरा तैशुदा रास्ता क्या है.. न इश्क का तिलस्म देता है चैन, न दिखती है तूफानी वादों में रवानगी चलना है..चलते ही  जाना है ..रुकना नहीं जिंदगी ऐ रस्ते के खुदाओं जरा दूर ठहर जा हम दूरियों से नहीं ठहरने से घबराते हैं.. तू  छांव का भुलाबा दे न रोक मुझे चलना है..चलते ही  जाना है ..रुकना नहीं जिंदगी

दिल्ली की रात

दिल्ली की रात के आगोश में नींद नहीं लोग सवेरे के पहलुओ में छुपते हैं इस शहर के लोग जाने क्यों सारी रात जागते हैं.. काला सफ़ेद हो जाता है नकली रौशनी के नकाब से सूरज के उजालो से सफेदपोश बचते हैं हर जगह फैला है झूठ का तिलस्म यहाँ शब्द भी फरेब लगते हैं.. शेर नहीं शायरी नहीं सर्राफा बाजार है हर तरफ हर जगह तिजारत जिस्म और जज्बातों की शहर दिलवालों का ज़फर को भुला बैठा अब रायसीना में भी मुर्दे बसते हैं....