दिल्ली की रात
दिल्ली की रात के आगोश में नींद नहीं
लोग सवेरे के पहलुओ में छुपते हैं
इस शहर के लोग जाने क्यों सारी रात जागते हैं..
काला सफ़ेद हो जाता है नकली रौशनी के नकाब से
सूरज के उजालो से सफेदपोश बचते हैं
हर जगह फैला है झूठ का तिलस्म
यहाँ शब्द भी फरेब लगते हैं..
शेर नहीं शायरी नहीं सर्राफा बाजार है हर तरफ
हर जगह तिजारत जिस्म और जज्बातों की
शहर दिलवालों का ज़फर को भुला बैठा
अब रायसीना में भी मुर्दे बसते हैं....
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