एक शाम ठिठुरती सी
वो शाम बहुत ठंडी थी...घर के अन्दर हीटर की गर्माहट थी पर बाहर सर्दी की कंपकपी ..फिर भी घर काटने को दौड़ रहा था..मेरे उसके बीच सवेरे से एक शीत युध्द चल रहा था और उसने मुझे अपना सामान ले कर निकल जाने कहा था.. पर ऐसा वो कई बार कर चुका था, इसलिए बात को सीरियसली न लेकर मैं इस बात का इन्तजार कर रही थी की थोड़ी देर में तो माफ़ी मांगेगा..और फिर पीछे से किचन आकर वो मुझे अपनी बांहों में समेट लेगा पर उस दिन ऐसा कुछ नहीं हुआ.. फिर मैं बच्चे को गोद में लेकर पार्क चली गयी ..पार्क में बहोत देर तक चुपचाप बैठी रही..सामने कुछ बच्चे खेल रहे थे, मेरे साथ बहन का लड़का भी था, वो भी उन बच्चो में शामिल हो गया. उसे इस बात का कोई आभास नहीं था, की उसकी मौसी के मन में कौन सा तूफ़ान चल रहा है जब अँधेरा हुआ तो मैं वापस घर पहुची, घर मैं कदम रखते ही उसने फिर से पूछा, तुमने अपना सामान पैक किया? मै बिलकुल बिखर सी गयी...तड़प कर पलटी और उसकी आँखों में झाँक क...