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Showing posts from December, 2023

रेशम की डोर

 कभी कभी हमें लगता था, ज्यो तुम्हे  पहले भी कहीं देखा हो  पहले भी कहीं हम  मिले हों,  ----- ज्यों सरयू के किनारे,  चित्तोर के दुर्ग में,  हुमायूँ के मकबरे में  रेशम की चमकती डोर में , एक झलक मिलती थी स्नेहिल  अब जाना वो तुम थे... स्कूल की दीवारों से जुड़े खून के रिश्तों से परे  भाई शब्द का अर्थ बताने वाले.. तुम थे  प्यार के मासूम बंधन से कौन बंधा रह पाता है  बंद  लिफाफों में भरे सूरज और पहाड़ों के  अधूरे चित्रों में कौन रंग भर पाता है   शिवाजी स्टेडियम से लोटस टेम्पल तक  तुम आओ हम सब कर लेंगे का वादा करने वाले भी तुम थे ....

अमावास का टिमटिमाता तारा

 तुम चाहो तो चाँद को छु लो  मैं  झील किनारे ही बैठना चाहती हूँ  लहरों के बीच बनती बिगडती  चाँद की परछाई  देखते रहना चाहती हूँ  मैं डरती हूँ चाँद को छूने से कहीं दाग न लग जाये  बस आईने की ख़ूबसूरती निहारना चाहती हूँ  तुम महफ़िल की  रौनक बनना चाहते हो  मैं अमावास का टिमटिमाता तारा  आसमान की ऊंचाई और झील की गहराई  कुछ ऐसा ही फर्क है तेरी मेरी चाहत में 

जैसे अक्सर हो जाते हैं लोग

 हाँ ये सही है मैं उस तरह सोच नहीं पाती  जैसा अक्सर सोचते हैं लोग. मैं  तुम्हारी हर  एक बात  आशाओं की डोर से गूंथ लेती हूँ  और हर डोर  सपनो की माला बन जाती है.  मैं हर रंग को ख़ुशी की नेमत समझ लेती हूँ  और हर ख़ुशी मेरे लिए इन्द्रधनुष बन जाती है. मैं हर उस कागज़ को कुरान समझ लेती हूँ जिस पर प्यार लिखा होता है  और इश्क  मेरे लिए खुदा की इबादत बन जाती है. पर तुम जानते हो, चीजें अक्सर वैसी होती नहीं,  जैसा मैं सोचती हूँ, जैसा मैं देखती हूँ. तुम्हारे बार बार समझाने पर भी  मैं सख्त जमीन को महसूसना नहीं चाहती,  मैं क्या करूँ, अपने आप को बदल नहीं पाती. उस तरह, वैसा बना नहीं पाती,  जैसी चीजें होती हैं ... जैसे अक्सर हो जाते हैं लोग ...

चांदनी का अमावस

 पता नहीं क्यों डर लगता है  चाँद को देखकर और हसीं चांदनी  शूल बनकर दिल के आर पार होती जाती है  तुम्हारी खामोश ख़ूबसूरती  रातों को खौफनाक नज़र आती है  मेरी आखों की  कशिश  अनजानी तड़प में बदल जाती है  पता नहीं क्यों  डरती हूँ अमावस की कलि ररत न आ जाये  और ये समंदर किसी नदी में न खो जाये  शायद मैं खुद चांदनी का अमावस हूँ 

उदास है शाम

 आ जाओ कि बहुत उदास है शाम  तुम्हारा आना बिखेर देता है कई रंग. आ जाओ कि बड़ा  खामोश है समा  तुम जो आते हो कि गूंजने लगती है गुंजन. आ जाओ बड़े स्याह लग रहे लम्हे जिन्दगी के  कि तुम्हारे आने पे उजास से भर जाता है मन. आ जाओ कि ताप रही जेठ की दुपहरी की  हवा  कि प्यार की खुशबुओं  से भर जाये चिलमन. ११.०४.२००३